रामकेश एम.श यादव

आईना दिखाना है!

समय  की धारा में बह  जाना है,
पल दो पल का यहाँ ठिकाना है।
जो समय  दिया है  ऊपरवाले ने,
उसे  मील का पत्थर  बनाना  है।
जरुरत क्या है कहीं और झाँको,
मंगल - चाँद पर बस्ती बसाना है।
बहते  समय  को  कौन है पकड़ा,
उसी  के  साथ  सबको जाना है।
मत क़ैद कर  खूब सूरत जिंदगी,
दुष्टों   को  आईना   दिखाना   है।
सुर्ख  होंठों से बह रहा जो झरना,
उससे मरुस्थल में बहार लाना है।
ये कुर्सी की धौंस न काम आएगी,
एक दिन खाली हाथ ही जाना है।
कोयल को ठीक  करने  कौवे जुटे,
उन कौओं का मुखौटा  उतारना है।
सोते  यहाँ  जो  सरकार  ओढ़कर,
नींद  से  उन्हें  भी  तो  जगाना है।
कौन छिपायेगा  कपड़े  से नग्नता,
बेशकीमती  समय  न  गंवाना  है।
क्यों  करेगा  समय  तेरा  इंतजार,
देखो!  रोने  से  ज्यादा हँसाना है।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

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