आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावन मंच को प्रणाम, आज की रचना धनवन्तरि शतक भाग दो के आगे के भाग का अवलोकन करें """""""""                पुष्प जौ आवै नहीं समयानु तौ आस कबौ  फल कय नहि कीजै!!                    बसन्त  ना फूल लगै अमराई तौ कूकिहंय कोकिल आस ना कीजै!!             नाते यही बस देव अशोका तौ पुष्प सदा धनवन्तरि  लीजै!!                            भाखत चंचल मर्ज बढ़ नहि अऊर जवानी मा धन नहि दीजै!! 1!!               पानी बहन जौ रिसाय रिसाय तौ हल्के मा नाहि कबो यहु लीजै!!                          घाव बनया गर्भाशय महंय जे देहु कै नाशु के नाशु कय कारनु लीजै!!               दुई भांति बहय संकोचु लगै कहूं श्वेत रहै कहूँ लाल कहीजै!!                          भाखत चंचल आवै कछू दिनु कारनु एहि ना गोद भरीजै !! 2!!                         रसधारु मा पानी बहै  दिनुरैनु औ मासिक केरु ना बातु करीजै!!                      पौडर सीरपु लायको लेऊ  औ बैद्य कहंय तौ अशोका हु दीजै!!                       मासहु तीनि पिता घरनी  तौ उत्तमु स्वास्थ्य कै खानु कहीजै!!                          भाखत चंचल स्वस्थ रहैं औ सौ उपरान्त तौ पीकर लगीजै!! 3!!                सुन्दरू स्वस्थु रहैं घर नारि तौ यै अवतार तौ लक्ष्मी कहीजै!!                    सुन्दरू बाल गोपाल जनैं अरू गोद नही तौ खाली लखीजै!!                               भाखत चंचल काव कही सम्पन्न कुटुम्ब  तौ अवनी कहीजै!!                                   छोटु रहै परिवार खुशाल ओ चन्द्र कलानु  लौं नीकु लगीजै!! 4!!                आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल!! ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन;;;;885352139८, 9125519009!!

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