बहुत से लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं।
बहुत से अपनी दुनिया सजा लेते हैं।
बाप की कमाई से दुनिया नहीं सजती,
कुछ अपने बूते आसमां हिला देते हैं।
वफ़ा में मिटते थे उस जमाने के लोग,
अब हवा से मिलके चराग़ बुझा देते हैं।
दुनिया में अच्छे लोगों की भी कमी नहीं,
अपना खून देकर वो जान बचा देते हैं।
जरुरत के पहाड़ झुर्रियाँ आने नहीं देते,
बेकाम के लोग जवानी गंवा देते हैं।
सिकंदर खाली हाथ ही गया दुनिया से,
फिर भी मूर्ख ऑक्सीजन चुरा लेते हैं।
हम करते रहते हैं अक्सर गलतियाँ,
मगर इल्जाम दूसरों पर लगा देते हैं।
वो सबकी राहों में फूल बिछाता है,
लोग उसकी राहों में काँटे बिछा देते हैं।
सांस कब ख़त्म होगी, कुछ पता नहीं,
कुछ परिन्दे की जगह अण्डे उड़ा देते हैं।
यादें उसकी झलकती हैं आज भी साफ,
वैसी पाक नजर लोग कहाँ रखते हैं।
पहले के बोते थे कलम से इंक़लाब,
अब तो दुश्मन से हाथ मिला लेते हैं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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