सुधीर श्रीवास्तव

बाल कबिता
बचपन
******
जब हम छोटे थे
बाबा के पास सोने के लिये
आपस में खूब लड़ते थे,
बड़े होने का दंभ भी था
तभी तो छोटों को धमका लेते थे।
तब दादी को बीच में 
आना ही पड़ता था,
हमें कभी प्यार से कभी धमकी से
उनका फैसला होता था।
उनका निर्णय अटल होता
किसी का कोई न बस चलता था।
मन मारकर हम रह जाते,
दिन के हिसाब से ही 
बाबा के पास सो पाते।
सुबह उठते ही फिर
आज मेरा नंबर है
की रट लगाने लग जाते।
✈सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.,
     8115285921
@मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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