दिव्य भाव (सजल)
दिव्य भाव बनकर बहना है।
सुंदर मानव सा रहना है।।
कदम-कदम पर धाम बनाओ।
उत्तम कर्म सदा करना है।।
आकर्षक हों कर्म निरन्तर।
सात्विक भाव सदा गढ़ना है।।
शुभ भावों का सहज मिलन हो।
हाथ जोड़ सबसे मिलना है।।
कर्म प्रधान विश्व में स्थापित।
कर्म पथिक बनकर चलना है।।
देवों को आदर्श बनाकर।
मानव को दानी बनना है।।
जो देता है यश पाता है।
सदा यशस्वी बन जीना है।।
सुंदर कर्म करो दिन-राती।
प्रेम सरस अमृत पीना है।।
नेक इरादे हों संकल्पित।
सबके प्रति अच्छा करना है।।
पूर्वाग्रह को दुश्मन जानो।
मन को वस्तुनिष्ठ रखना है।।
कच्चा कान कभी मत रखना।
सच्चाई को खुद चुनना है।।
जालसाज से दूर खड़ा हो।
ताना-बाना खुद बुनना है।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
मेरी पावन शिव काशी
गायेंगे हम दोनों जमकर,वरुणा-अस्सी के संगम;
नाचेंगे हम झूम-झूम कर, बड़े प्रेम से नित हरदम;
हाथ मिलाकर अंक में भरकर, मुस्कएँगे रात-दिवस;
तड़प रहा है भावुक मन यह, देखन को पावन काशी।
आयोजन होगा निश्चित ही,बनना है काशीवासी;
रूप बनेगा प्रेमपरायण,भक्तिभावमय आवासी;
पावन निर्मल साथ रहेगा, गंग धार होगी उर में;
सहज भावमय हृदय मिलन की, होगी अनुपम शिव काशी।
रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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