छप्पय छंद
ताना कभी न मार, काम यह अति घटिया है।
देना सबको स्नेह, सोच यह अति बढ़िया है।।
व्यंग्य वाण जो छोड़ता, करता वह व्यभिचार है।
सबके प्रति सम्मान ही, सुंदर शिष्टाचार है।।
आहत करना पाप है, मत अधर्म की नाव चढ़।
सबके सुख का ख्याल रख, प्राणि मात्र की ओर बढ़।।
विनिमय का सिद्धांत, अनोखा बहुत निराला।
जिसका जैसा कृत्य, उसे वैसा ही प्याला।।
प्याला में मधु रस रहे, काम ऐसा ही करना।
जी भर कर पीना सदा, मस्त बनकर नित चलना।।
मानवता की नींव पर, दिखे यह सारी धरती।
उत्तम पावन भाव से, दुखद -दरिद्रता मरती।।
हो सबका उत्थान, मनोकामना हो यही।
शिष्ट-सुजन का मेल, है अनमोल रतन सही।।
सबके मन की भावना, का उत्तम सत्कार कर।
सबको पढ़ना सीख लो,मन में अपने भाव भर।।
सबका नित कल्याण कर, सुंदर सोच-विचार हो।
हरियाली हो सब जगह,सदा दिव्य व्यवहार हो।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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