*ओ पालन हारे *
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ओ सृष्टि के पालन हारे,
क्या तेरी अब मर्जी है।
मानवता सुबक रही है ,
पाशविक वृत्तियों ने घेरा है।
पृथ्वी डगमगा रही है,
खतरा अभी टला नहीं है।
मानवता सुबक रही है,
पाशविक वृत्तियों ने घेरा है।
मानव बना प्रकृति का दुश्मन,
पालनहार को रौंद रहा ,
क्रूरता की सब सीमा लांघा,
इस पर लगाम जरूरी है।
मानवता सुबक रही है,
पाशविक वृत्तियों ने घेरा है।
बच्चे शिक्षित हो नये भारत के,
और संस्कारों से परिपूर्ण हों,
फिर कोई ताकत हरा नहीं सकती ,
विश्व विजयी भारत को।
बच्चे बच्चे को अब वयमैतिक पाठ जरूरी है,
मानवता सुबक रही है,
पाशविकता ने घेरा है…
पृथ्वी डगमगा रही है,
खतरा भी तो टला नहीं है…
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सुखमिला अग्रवाल'भूमिजा'
स्वरचित मौलिक
कापीराइट ©️®️
मुंबई
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