*कुण्डलियाँ*
रजनी गंधा की महक, ज्यों ज्यों घुलती श्वास।
घूँघट के पट खोलकर, आते साजन पास।
आते साजन पास, चबाते पान गिलौरी।
थामे माणिक हार, उतारे फिर पटमौरी।
सौरभ पूछे बात, लजाये क्यों री सजनी?
प्रियतम आये पास, मिलन की है ये रजनी।।
1: *मदिरा सवैया*
साथ रहे जब मीत सदा, मन पावन गंग बहे सरिता।
आस्य सजा सुर की कजरी, चहके बहके महके सविता।
मोहक मादक रूप लिये, हरषे तब आँगन में वनिता।
छंद लिखे मसि नित्य नये, मन भावन प्रीत गढ़े कविता।।
✍🏻©️
सौरभ प्रभात
मुजफ्फरपुर, बिहार
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