🙏🏼 *सुप्रभातम्*🙏🏼
*मधु के मधुमय मुक्तक*
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🌹🌹 *जाग्रत*🌹🌹
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◆ जाग्रत मानव ही करे , सत्य स्वयं स्वीकार।
कर्म विचारों से अधिक, संकल्पित आधार।
छूना चाहे आसमां, पाना चाहे नेह,
जाग्रत मन की सोच का, भिन्न भिन्न व्यवहार।।
जाग्रत ही सुशुप्त मनुज, देता है पहचान।
प्रतिपल सार्थक वो करे, कर्म पथिक का मान।
अगणित कंटक की डगर, बाधाएँ सब ओर।
कर्म भाव में सजगता, जाग्रत का संज्ञान।।
जाग्रत मन की अवस्था, जीव बनाए बुद्ध।
बुद्धि विचारों में प्रबल, अन्तर्मन से शुद्ध।
सतत कर्म की कल्पना, जीवन का विश्वास।
कामचोर को देखकर, जाग्रत ही हो क्रुद्ध।।
जाग्रत को होता नहीं, जीवन पथ का त्रास।
लक्ष्य प्राप्ति करता वही, अटल धरे विश्वास।
भावों की संकल्पना, प्रतिपल का उपयोग,
जाग्रत मानव ही बने, जीवन पथ पर खास।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*02.06.2021*
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