*।।क्रोध और अहंकार।।रिश्ते*
*और दोस्ती दरकिनार।।*
*।।विधा।।हाइकु।।*
1
क्रोध अंधा है
अहम का धंधा है
बचो गंदा है
2
अहम क्रोध
कई हैं रिश्तेदार
न आत्मबोध
3
लम्हों की खता
मत क्रोध करना
सदियों सजा
4
ये भाई चारा
ये क्रोध है हत्यारा
प्रेम दुत्कारा
5
ये क्रोधी व्यक्ति
स्वास्थ्य सदा खराब
न बने हस्ती
6
क्रोध का धब्बा
बचके रहना है
ए मेरे अब्बा
7
ये अहंकार
जाते हैं यश धन
ओ एतबार
8
जब शराब
लत लगती यह
काम खराब
9
नज़र फेर
वक्त वक्त की बात
ये रिश्ते ढेर
10
दिल हो साफ
रिश्ते टिकते तभी
गलती माफ
11
दोस्त का घर
कभी दूर नहीं ये
मिलन कर
12
मदद करें
जुबानी जमा खर्च
ये रिश्ते हरें
13
मिलते रहें
रिश्तों बात जरूरी
निभते रहें
14
मित्र से आस
दोस्ती का खाद पानी
यह विश्वास
15
मन ईमान
गर साफ है तेरा
रिश्ते तमाम
16
मेरा तुम्हारा
रिश्ता चलेगा तभी
बने सहारा
17
दूर या पास
फर्क नहीं रिश्तों में
बात ये खास
18
जरा तिनका
आलपिन सा चुभे
मन इनका
19
कोई बात हो
टोका टाकी मुख्य है
दिन रात हो
20
कोई न आँच
खुद पाक साफ हैं
दूजे को जाँच
21
खुद बचाव
बहुत खूब करें
यह दबाव
22
दोषारोपण
दक्ष इस काम में
होते निपुण
23
तर्क वितर्क
काटते उसको हैं
तर्क कुतर्क
24
कोई न भला
गलती ढूंढते हैं
शिकवा गिला
25
बुद्धि विवेक
और सब अपूर्ण
यही हैं नेक
26
जल्द आहत
तुरंत आग लगे
लो फजीहत
*(विधा।।मनहरण छंद 8 8 8 7)*
माँ कहे नहीं जाना है।
खेलने नहीं आना है।
कॅरोना का जमाना है।
*बच्चे रहें घर में।।*
बस पढ़ना पढ़ाना।
घर का ही खाना खाना।
दस बार धुलवाना।
*अच्छे रहें घर में।।*
बस ड्राइंग बनायो।
घर में खेलो खिलाओ।
तुम सीखो ओ सिखाओ।
*बचें रहें घर में।।*
समय ठीक नहीं है।
बीमारी थमी नहीं है।
कॅरोना कमी नहीं है।
*सच्चे रहें घर में।।*
कैरम ओ लूडो खेलो।
खराब वक़्त को झेलो।
जो कुछ मिलता ले लो।
*पर रहें घर में।।*
माँ पिता हाथ बटाओ।
घर समय बिताओ।
बीमारी को न बुलाओ।
*बच्चें रहें घर में।*
*।।अहंकार नहीं, इरादा , है*
*जीवन सफल की परिभाषा।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
सबसे बड़ी पूंजी अच्छे
विचार और आशा है।
एक यही नियम कि मन
में आये न निराशा है।।
जो भाये न स्वयं को न
करें दूसरों के साथ।
एक सफल जीवन की
सरल परिभाषा है।।
2
विचारऔर व्यवहार यह
दोनों हमारे श्रृंगार हैं।
दुनिया को केवल इनसे
ही सरोकार है।।
धन और बल का केवल
सदुपयोग ही हो।
कर्तव्य पूर्ण हो तभी तो
आता अधिकार है।।
3
इरादे तक़दीर बदलने का
राज़ होते हैं।
कर्मशील लकीरों के नहीं
मोहताज होते हैं।।
जो सीखते हैं असफलता
के अनुभव से।
आगे चल कर उन्हीं के
सर ताज होते हैं।।
4
अहम अच्छी बात नहीं
यह टूट जाता है।
गिरकर आसमां से जमीं
पर फूट जाता है।।
कुछ जाता नहीं है साथ
सिवाअच्छे कर्मों के।
धागा सांसों का इक़ दिन
जब छूट जाता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर*
*"श्री हंस"।।बरेली।।*
मोब 9897071046
8218685464
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