अजनबी थे किन्तु तेरी ओर मैं खिंचता गया,तेरे आने से मेरा जीवन निखरता गया। - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

अजनबी थे किन्तु तेरी ओर मैं खिंचता गया,
तेरे  आने  से  मेरा   जीवन  निखरता  गया।
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बंध गये परिणय में हम चांदनी सी रात में,
है  दमकती   तूं  सदा  सोलहो  श्रृंगार  में।
तूं हमारी हम तुम्हारी  बात को सुनने लगे,
तेरे मेरे सुनें चितवन से  दीप  जलने  लगे।
आसमां दिल की सजी है पथ सभी दिखता गया।
तेरे   आने   से    मेरा   जीवन   निखरता   गया।।

मेरे दु:ख-सुख तेरे हैं तेरे दु:ख-सुख मेरे हुए,
मेरे   सपने   तेरे  सपने  सब  तेरे - मेरे  हुए।
मेरे - तेरे,  तेरे - मेरे  प्रतिपल   हमारे   लिए,
मेरी  सुधि  है  तूं  प्रिये  तेरी  सुधि  मेरे  हुए।
तेरे पांवों की खनक से दिन सभी महकता गया।
तेरे  आने   से   मेरा   जीवन   निखरता   गया।।

बादलों सी तेरी आंखें पुष्प सा तेरा अधर है,
चांद सा मुखड़ा तुम्हारा मंजिलें तूं है हमारी।
पर्व  सारा  है  तुम्हीं  से  तूं  मेरी  पतवार  है,
लहलहाते खेत  दिल की  श्वांस तूं है हमारी।
आज के दिन मिल  गये  हम  दिल मचलता गया।
तेरे   आने   से    मेरा   जीवन   निखरता   गया।।

मेरे  खारे  अंश्रू   को  तूं  अधरों  से  पी  गयी,
मेरे जीवन के हलाहल पलछिनों में कट गयीं।
तेरे  पलकों  के  शब्द   मुझको   रिझाने  लगे,
तेरे आलिंगन से  खुशियां  अभिसार हो गयीं।
मेरे  नीरस  मन  में   मधुमास   सा   भरता  गया।
तेरे   आने   से    मेरा   जीवन   निखरता   गया।।

     - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

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