नूतन लाल साहू

तरुवर की हरियाली

कोई चांदनी रैन को ढूंढता है
कोई विश्व में चैन को ढूंढता है
देखो पेड़ो की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
मानो संदेश दे रहा है
एकता में ही है खुशहाली
कोई वन में,भगवान को ढूंढता है
कोई धन में ईमान को ढूंढता है
तीर सरीखा,जीवन निकल गया
ये अनमोल जीवन, वृथा ही गंवाया
पर तरुवर से कुछ न सीखा
देखों पेड़ की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
गीत गा रही है कोयल काली
पत्ते बजा रहे है ताली
कौन रहा होगा,वो माली
जिसने की रखवाली
देखो तरुवर की हरियाली
झूम रही है डाली डाली
पर तरुवर से कुछ न सीखा
हरे भरे घने जंगल में
ढूंढ अधिक दिख रहा है
यही है आदि,यही है अंत
इंसान समझ नहीं पा रहा है
देखो पेड़ो की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
तर्क वितर्क के पचड़े में न पड़ो
प्रकृति से खिलवाड़ न करो
दो से हम,तीन हुए
चार हुए और पांच हुए
एकता में तो,दर्पण जैसा
जब बिखरे तो,कांच हो गए
देखो पेड़ की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
मानो संदेश दे रहा है
एकता में ही है खुशहाली

नूतन लाल साहू

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...