मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
            *कोरा*
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◆ कोरा कागज यूँ रहे , उज्ज्वल धर परिधान।
रंग भरे जब लेखनी, शब्द करे संधान।
शब्द करे संधान, वृहद् शुभ भाव निराला।
शोभित अनुपम सृजन, नृत्य जैसे सुरबाला।
कह स्वतंत्र यह बात, रंग कोरा का गोरा।
सप्त रंग के साथ,  गया रच कागज कोरा।।

◆ कोरा जब तक मन रहे, भाव नहीं चितचोर।
प्रीत रंग जब भी मिले, नाचे मन का मोर।
नाचे मन का मोर , देख कर मेघ घनेरे।
इंद्रधनुष के रंग, बसे तन मन में मेरे।
कह स्वतंत्र यह बात, यहाँ क्या तोरा मोरा।
विस्तृत मन के भाव, सहज होता मन कोरा।।

◆ कोरा कोरा देख के, चाहें भरना रंग।
रंग भरी दुनिया यहाँ, दिखी अनेको ढंग।
दिखी अनेको ढंग, सतत् परिवर्तन होता।
जो होता बेरंग, खुशी मन की वह खोता।
कह स्वतंत्र यह बात, वजन तन जैसे बोरा,
हल्का तन मन साथ, रंग मधुमय यह कोरा।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*30.06.2021*

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