निशा अतुल्य

मत काटो वृक्ष

नहीं बचेगा धरा पर कुछ भी
अगर वृक्ष काटोगे तुम ही
सांसे होंगी दुर्लभ सबकी
चिमनी विष उगलेगी ही ।

हरित धरा सब शोषित करती
मानव विष जो हर पल भरती ।
सोच विचार कर कदम उठाओ
चलो मानव अब वृक्ष लगाओ।

प्राणवायु तब ही शुद्ध होगी
हरी भरी धरा को रखो 
स्वास्थ्य सभी का इस पर निर्भर
विचार नहीं अब कदम बढ़ाओ।

जल वाष्प बन उड़ जाता 
कारे बदरा बन छा जाता
झूम झूम कर वृक्ष ये प्यारे
वर्षा को सदा रहे बुलाते ।

नन्ही नन्ही बूंदे बरखा की
तपन धरा की सदा बुझाती
एक दूजे के पूरक है सब
धरा,वृक्ष,वायु,जल सारे ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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