लहु के तस्कर
घायल पड़ा फुटपाथ पर
मौत की वह घाट पर
पहले तो एम्बुलेंस ना आई
किसी तरह मौत घबराई
अरे कोई इसे उठा तो लो
किसी गाड़ी में बैठा तो लो
ले जाया गया अस्पताल
जो खुद ही था बीमार
डॉक्टर वह क्या होता है
दवा-दारू किसने देखा है
जमीन पर मरीजो का उपचार
बिस्तरों पर सुगर अपार
तभी कही से एक दीदी आती
पट्टी बांधकर चली जाती
तड़प रहा था वह निरन्तर
जीवन लग रहा प्रलयंकर
आते है कुछ डॉक्टर भी
अस्पताल के इंस्पेक्टर भी
लेकिन होता है यह क्या
तड़प या किसी की जय
अभी तो खेला शुरू हुआ
झमेला सभी शुरू हुआ
पहले हो इसकी जांच
लेकिन कहा यह तो बताओ
करता कौन है यही समझाओ
अस्पताल में मशीने नही है
जो है वह जंग से रंगी है
ऊपर से जांच करेगा कौन
कक्ष के बाहर ताला मौन
जाओ बाहर में दुकान सजी है
एक दो नही हजार खुली है
वही जांच करवाकर आया
पूंजी सारी लुटाकर आया
देखकर डॉक्टर घबराए
मथा उनका जोरो चकराए
लाल रक्त बहुत कम है
जाओ जाकर व्यवस्था करो
ब्लड बैंक से लेकर आओ
लेकिन वहां कैसे मिले
कोई तो राह कहे
अब शुरू होता तमाशा
आधुनिक भारत पर तमाचा
ब्लड बैंक कंगाल बना है
खाली वहां पोस्टर टँगा है
लहु आज नही कल आना
चलता रहता सदा बहाना
करे क्या कोई जुगाड़ नही है
बताओ कोई रास्ता और नही है
है पास में विकल्प शेष
लेकिन करना होगा कार्य विशेष
यम से बचना लक्ष्मी लाओ
नोटो के कुछ छींटे उड़ाओ
बड़ा नही छोटा बाजार
एक अंक का दस हजार
दस हजार कुछ तो कम हो
हम गरीब हम पर रहम हो
नही नही सब दाम तय है
हमे भी तो सबका भय है
जल्दी करो जल्दी लाओ
वरना तुम कल फिर आओ
करता क्या भला वह बेचारा
तड़प रहा किस्मत का मारा
गरीब होना श्राप भयंकर
फलता फूलता लहु का तस्कर।
सोनू कुमार मिश्रा
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