रामबाबू शर्मा राजस्थानी

.
                     कविता
               *बेटी की विदाई*

      बेटी अनमोल रत्न,घर की वो शान,
      हर पिता को उस पर,है अभिमान।
      संस्कार-संस्कृति का पावन बंधन ,
      हर समय रखती जो,घर का मान।।


       बेटी की विदाई,सत्कर्मों का फल,
       फिर भी न जाने,कैसा होगा कल।
       विश्वासों की गठरी सा है यह तल,
       मन होता है विचलित पर तू चल।।


       माँ-बाप की,बेटी ने लाज बचाई,
       ओस बूंद सी ये,सबके मन भायी।
       मनभावन बन्धन की रीत बनाई,
       इसलिए करते हैं बेटी की विदाई।।

       पिता के भाल का बेटी है चंदन,
       तभी तो हम सब करते हैं वंदन।
       विदाई की इस बेला को  नमन,
       आओ सब करें हम अभिनंदन।।

       आओ,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,
       घर-आंगन में सब खुशियाँ लाओ।
       एहसासों की इस बदली को मानों,
       सत्कर्मो का पुण्य फल है जानों।।

        ©®
        रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...