शीर्षक-प्रेम की भाषा ही समझे दिल
विधा-कविता
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तेरी साँसों की गरमाहट में मेरी दुनिया बसी हुई है,
प्यार के दो पल जीने को दिल की दुनिया बसी हुई है।
प्रेम ही मंदिर प्रेम ही पूजा प्रेम से बढ़कर नहीं कोई दूजा,
प्यार का मौसम लाने को बरसात रूमानी हुई है।
प्यार मिले तब इकरार मिले जब जीने का विश्वास मिले जब,
मन के मुरझाए बागों को प्रेमप्रसून खिलने का एहसास मिले जब।
बिखरे दिल के ज़ख़्मों को मैं मद्धम मद्धम सहलाता हूँ,
साया हूँ तेरे प्यार का मैं एहसास को पास बुलाता हूँ।
चल बन जाएं हमराही दो क्या रखा है और जीवन में,
प्यार के दो पल जी ही लो सब सूना है प्रेम बिन जीवन में।
मुँह फेर न लेना कभी मुसाफ़िर ये सफ़र रोज़ न आता है,
प्यार में जीलो जीवन सारा ये नश्वर जीवन फिर लौटके न आता है।
प्रेम की भाषा ही समझे दिल प्रेम अभिलाषा ही रक्खे दिल,
प्रेम पथिक बन जाने को सफ़र है करता रहता दिल।
रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना
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