सुधीर श्रीवास्तव

 जीतने के लिए
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पिता पुत्र को
जीवन के ढंग बताता है,
संघर्ष करते हुए
हौसले के गुण सिखाता है।
जीवन जीने के लिए
लड़ना पड़ता है,
यही बात पिता
पुत्र को समझाता है।
जीवन कुश्ती के अखाड़े जैसा है
जहां हर पल हर किसी से
किसी न किसी रुप में 
भिड़ना ही पड़ता है,
सिर्फ़ भिड़ने भर से भी
कुछ नहीं होता,
जीतने के लिए
भिड़ने से पहले
हिम्मत, हौसला, जुनून
पैदा करना ही पड़ता है।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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