श्रृंगार
चिलमन से देखा चाँद तो मदहोश हो गए
कोई छीन न ले तुझको ये सोच डर गए
चिलमन।।।।।।।
चुनरी है तेरी झिलमिल नीली नीली सी
लगता है हज़ारों सितारे लिपट गये
चिलमन। ।।
रंगत है तेरी मरमरी आँखे बड़ी बड़ी
इन झील से गहराइयों मे हम डूब गये
चिलमन।।।।
ऐसा तराशा तुझको खुदा ने जानेमन
जैसे कोई सुन्दर इबारत सी लिख गये
चिलमन ।।।।।
नाज़ुक नरम कलाई पर चूड़ी है रेशमी
उनकी खनक सुनके मतवाले मचल गये
चिलमन।।।
बालो में लिपटा गजरा ऐसे महक रहा
जैसे हज़ारों इत्र दान खुल गये
चिलमन।।।।
पैरों की पायजेब यू छनक रही
जैसे वीणा के तार छिड़ गये
चिलमन ।।।
रश्क करे दुनियां मेरे नसीब से
ये हुशन की मलिका तुझे हम कैसे पा गये
चिलमन।।।।
ये नाज़नीन तेरी इबादत मैं करू
मन मंदिर में जया की तुम बस गये
चिलमन।।।
स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज
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