मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
      *माली*
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◆ माली सीचें बाग को, कुसुमित होते फूल।
शोभित सुंदर वाटिका,धन्य धरा शुभ मूल।
धन्य धरा शुभ मूल, हरित तरुवर  बहु भाए।
फल आच्छादित वृक्ष,  देख मन बहु हर्षाए।
कह स्वतंत्र यह बात, धरा हो कहीं न खाली।
एक मंत्र ही याद , सतत् रखता है माली।।

◆ माली अभिभावक बना, पालन शुभ कर्तव्य।
संकल्पित नव भाव से, रूप बनाए भव्य।
रूप बनाए भव्य, ईश की कृपा समाए।
जीवन दाता धर्म, कर्म ही मन को भाए।
कह स्वतंत्र यह बात, पवन से झूमे डाली।
थिरके कुसुमित पुष्प, देख हर्षित  है माली।।

◆ माली कोमल भाव से, सदा लगाए बाग।
प्रेम, धैर्य  अरु साधना, अति शोभित अनुराग।
अति शोभित अनुराग, सतत् जीवन सुख पाता।
बीज लगाए पौध, पौध से वृक्ष बनाता।
कह स्वतंत्र यह बात, सभी यह प्रण लो खाली।
एक लगाओ वृक्ष, सीख देता यह माली।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज✒️*
*27.06.2021*

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