चन्द्र मोहन पोद्दार

जनक नन्दिनी

"सीता कहती है जाना 
जहां स्वामी वही ठिकाना !
बिन पति मैं कैसे रहूंगी?
 एक पल भी जी ना सकूंगी !"

माता का मन घबराता
 बिन पुत्र नहीं रह पाता।
" मैं महल में नहीं रहूंगी
 तेरे संग ही वन को चलूंगी"

 दुविधा में राम पड़े थे 
क्या कहे ये सोच रहे थे 
दोनों जिद करती जाती
 राम को थी उलझाती।

 तब राम ने डर दिखलाया
 फिर वन के कष्ट बताया 
कुछ नीति नियम समझाया 
कुछ कटु वचन भी सुनाया।

" मेरा जाना कठिन करो ना
 असमंजस में रखो ना 
आदेश पिता का मिला है 
जल्दी पूरा करना है "

फिर माता को समझाया 
उसे पत्नी धर्म बताया-
"जहां पति रहे वहीं रहना 
पति को ही स्वामी समझना

 मां यदि तुम्हें है चलना
 आदेश पिता का लेना
 वरना धीरज रख लेना 
जिद और नहीं अब करना।"

 "हे सीते तुम भी मानो 
मेरी दुविधा को तो जानो 
वनवास सहज नहीं होता 
कंटक कभी जलज ना होता

 बड़े कष्ट मिलेंगे वन में 
नहीं सुख कोई जीवन में 
कभी हिंसक पशु मिलेंगे 
दानव पिशाच घेरेंगे !
 
फलहार ही करना होगा 
भूखे भी रहना होगा
 कांटों पर चलना होगा 
धरती पर सोना होगा ।

मौसम प्रतिकूल मिलेगा 
सेवा में कोई ना होगा 
हर काम स्वयं करना है 
बड़े संयम से रहना है ।"

सीता ने राम को टोका
"अब और न दें मुझे धोखा !
 अर्धांगिनी आपकी हूँ मैं
 वनवासिनी बनूंगी अब मैं।

 वनवास का कैसा डर है 
साधु संतों का घर है 
वन में भी सुख से रहेंगे 
जो आप साथ में होंगे।

 मछली बिन पानी कैसे ?
 बिन प्राण शरीर हो जैसे !
बस आपका प्यार है सच्चा
 सब नाता रिश्ता कच्चा।

 महलों में आग लगाऊं
 जो आपका साथ न पाऊं 
मुझे संग ले चलो स्वामी 
वन गमन की भर दो हामी।"

 सीता ने जिद ठाना है 
अब व्यर्थ ही समझाना है ।

चन्द्र मोहन पोद्दार
सचिव
रा क सं
दरभंगा जिला ईकाई
8228090556

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...