अतुल पाठक धैर्य

महरूम
--------------
जाने कहाँ गए वो दिन,
न जाने कहाँ किस जहाँ में गुम हो गए।
फ़ासले दिलों के जो बढ़ते गए ,
मोहब्बत से हम महरूम हो गए।

मोहब्बत महरूम है पर तेरा ख़्याल नहीं,
ज़िंदगी की सच्चाई है हर तमन्ना गर पूरी हो जाए तो फिर तो तमन्ना तमन्ना ही नहीं यही सोचकर अब कोई मलाल नहीं। 

न मायूस मैं न मोहब्बत मआल है,
हूँ मैं बस अपनी शायरियों में मशरूफ
यही अपना हाल है।
रचनाकार-अतुल पाठक "धैर्य"
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...