समीक्षार्थ
हाइकु
विक्षिप्त धरा
उजड़ा है शृंगार
दोषी है कौन ?
वृक्ष तो लगा
धरा को जरा सजा
आये बादल ।
ऋतु बसंत
मुस्काई न कलियाँ
क्यों सोच जरा ?
सैयाद कोई
नोच गया कलियाँ
यौवन खत्म ।
संभालो जरा
अपनी ही बेटियाँ
समय बुरा।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
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