निशा अतुल्य

समीक्षार्थ 
हाइकु

विक्षिप्त धरा
उजड़ा है शृंगार 
दोषी है कौन ?

वृक्ष तो लगा
धरा को जरा सजा
आये बादल ।

ऋतु बसंत
मुस्काई न कलियाँ
क्यों सोच जरा ?

सैयाद कोई
नोच गया कलियाँ
यौवन खत्म ।

संभालो जरा
अपनी ही बेटियाँ 
समय बुरा।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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