वो कवि ही क्या जो चाटुकारिता में नित मुँह खोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।
तुष्टीकरण और जातिवाद की राजनीति हावी हो,
वंशवाद और पूंजीवाद में पिसती निज जनता हो,
जनसेवक ही जहाँ देश का जनशोषक बन जाए,
रक्तपिपासु शासक बन जनधन पे मौज करता हो।।
वो कवि ही क्या जो धर्म त्यागकर सत्ता संग डोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।
तानाशाही शासक जब जुल्म करे जनता पर ,
दमनकारी हो नीति और व्यभिचार करे जनता पर,
सिंसक रहा हो लोकतन्त्र और जनमानस बेबस हो,
प्रजातंत्र के सभी धूरी हों टिके भ्रष्ट शासन पर।।
वो कवि ही क्या जो भ्रष्ट राज का भेद नहीं खोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।
मरती हों प्रतिभाएँ प्रतिपल जब वर्गभेद आरक्षण में,
लुटती हों अबलाएँ हरपल सत्ता के ही संरक्षण में,
बेशर्म नीति के ज्ञाता ही जब न्याय बेचने लग जाएं,
जब राष्ट्र गौण हो जाता हो परिवारवाद के पोषण में।।
वो कवि नहीं जो मंचों से सुर में इनके मुँह खोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।
जब राष्ट्र सुरक्षा में बाधक सरहद की खुद दीवारें हों,
जब मानवता के दुश्मन के साथी भी घर के अंदर हों,
जब राष्ट्रविरोधी नारों की अंदर ही गुंज सुनाई दे,
राष्ट्र घिरा हो संकट में अवमूल्यन राष्ट्र का करता हो,
वो कवि ही क्या जो ऐसे में नहीं राष्ट्रवाद पर बोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।
सीता अनुसुईया के सत पर जहाँ प्रश्न ऊठाए जाते हों,
राम-कृष्ण जन्मस्थल पर जहाँ भ्रम फैलाए जाते हों,
सत्ता के लोलुपता में जब दुर्गापूजन हो प्रतिबंधित ,
कट्टरपंथी कुछ तत्वों से जब देश जलाए जाते हों,
वो कवि ही क्या जो लेखनी से फैला भ्रमजाल ना तोड़ेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।
✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना
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