नूतन लाल साहू

पछतावा

जीवन का वो,खूबसूरत पल
माना कि,वह बेहद प्यारा था
तुम थे, उस पर न्यौछावर
वह चली गई,पर
तू क्यों, रोता है
चिल्लाता है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई
अंबर की ओर तो देखों
कितने इसके तारें टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
पर क्या,अंबर
शोक मनाता है
सुख और दुःख तो
जीवन का अभिन्न अंग है
पर तू क्यों, रोता है
चिल्लाता है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई
धरती की तरु, लताओं
की ओर तो, जरा देखोंं
सुखी कितनी इसकी कलियां
मुरझाई कितनी शाखाएं
सुखी हुई फूल,फिर कहां खिली
पर बोलो,सूखे फूलों पर
मधुबन कब,शोर मचाया है
पर तू क्यों रोता है
चिल्लाता क्यों है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई
सोच न कर,सूखे नंदन का
देता जा बगिया में पानी
एक सत्य के ऊपर होती है
सौ सौ सपनों की कुर्बानी
सुख और दुःख तो
जीवन का अभिन्न अंग है
पर तू क्यों,रोता है
चिल्लाता क्यों है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई

नूतन लाल साहू

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