*वीर रस*
*रोला छंद में*
चाहे लू या शीत, ढाल भारत की बनते।
चाहे हो बलिदान,कभी भी वीर न हटते।।
धरती माता मान,सदा आगे ही बढ़ते।
लिये हथेली जान,सदा दुश्मन से लड़ते।1
ऊंचा मस्तक भाल,हुआ जब सैना लौटी।
दुश्मन कांपे हाथ,पैर जब की थी बोटी ।।
भरते है चिंघाड़,यही रिपु छाती चीरे।
पावन है यह धरा,देश के यह है हीरे।।2
माँ धरती के शेर, सदा ध्वज ऊंचा होगा।
यह वीरों का खेल,कभी रणभूमि पर होगा।
होगा यह इतिहास, रुग्ण गतिमान लिखेगा।
रिपुओं का वक्ष चीर,यही आतंक टूटेगा।।3
रिपु दल के ही शीश,चढ़ाओ तलवारों से।
भारत माँ को भेंट,मुंड काटो धारो से।।
रक्त पिपासा पाप ,यही पर ही पिघलेगा।
भारत माँ के लाल,कर्ज तेरा उतरेगा।।4
राजा तेजा वीर,सुरक्षा गो की करते।
तेजा का ही भाल,देख मीणा जो डरते।
डाकू मीणा चोर,युद्ध तेजा से मारे।
उनको काटा साँप, वचन पक्के जग प्यारे।।5
माटी चंदन रोल,उठा के लगा सुवीरों।
चमके तभी ललाट,धरा के हो रणवीरों।
उड़ा रहा तूफान,मातु दिल से ही बोली।
बोला वीर पहाड़,बांध मेरे कर मोली।6
रचा गया था कुचक्र ,वीर जीते जी मारा।
माँ सुभद्रा का लाल,कर्ज जो मातु उतारा।
गूँजी थी आवाज, तभी धरती ही डोली।
गर्भ धन्य जो हुआ, बहाते आसूँ बोली।।7
करता जाता बात,हवा में अश्व उठा था।
रिपु दल पर ही टूट,नुकीले खुर पंजा था।
दावानल पर घात,पीठ पीछे न हटा था।
ऐसा राणा अश्व,साहसी युद्ध लड़ा था।8
*✍️प्रवीण शर्मा ताल*
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