भष्ट्राचार
करो कृपा, जग जननी भवानी,हमारा राष्ट्र भष्टाचार से मुक्त कर पाएँ हम।
पाकर कृपा तुम्हारी कविगण, गाते हैं मधुरिम गीत से भष्टाचार दुर करें हम।
दे दो शक्ति साधना की माँ,जीवन पथ चल पाएँ हम।
राष्ट्र का प्रदूषण बुहारें, विश्व नेतृत्व क्षमतावान बनें हम।
कहीं भी निराशा दिखाई न देगी,चलो!आज भष्टाचार को भगाएँ हम।
वासंती उल्लास तुम्हारा, जीवन में पा जाएँ हम।
आत्म विश्वास करते-करते,परहित में लग जाएँ हम।
सजल श्रध्दा से,प्रखर प्रज्ञा से,शुचिता से जुड़ जाएँ हम।
जगमग ज्योति जला जीवन की,जीवन भर मुस्काएँ हम।
मानवी वेदना को हरें सुप्त देवत्व जागे,धरा मुक्त संताप से अब करें हम
सभी सभ्य ,शालीन हों,सभी शक्तिमान, हो नहीं उदासीन हम।
न कोई अशिक्षित रहे, न कोई पराश्रित रहे,समृद्धिशाली रचना बनाएँ हम।
कलम शक्ति का बोध हो प्रगति फिर मेरी अधुरी भष्टाचार मुक्त रचना पूरी कर पाएँ हम।
डॉक्टर रश्मि शुक्ला
प्रयागराज
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