अमरनाथ सोनी अमर

दोहा- बचपन! 
                                           जब तक बचपन में रहे, खाते थे बहुबार! 
जिद्द बहुत करते रहे, मांग बहुत थी यार!! 1!! 

पूरा करते मातु- पितु, बचपन खुशी अपार! 
मातु- पिता के गले मिल, बहुत खेलते यार!!2!! 

जो देखे मन भा गया, बचपन था दिलदार! 
 पिता  परिस्थिति नहिं पता, उन पर कितना भार!!3!! 

बचपन, युवा चला गया, आया पचपन मार! 
बचपन जैसी आदतें, मन में भरी हजार!! 4!! 

जीभ नहीं मानें मेरी, जो देखे मन भाय!                              बचपन जैसी आदतें, मन मेरे अकुलाय!! 5!! 

जिद करते परिवार से,मन  बचपन  अवधूत! 
खान- पान अरु वस्त्र भी, करे ब्यवस्था पूत!! 6!! 

अमरनाथ सोनी "अमर "
9302340662

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