कुमकुम सिंह

मैंने तुम संग प्रीत लगाई

प्रीत हमारी तुझे रास ना आई ।
तुम खास हो मेरे लिए यह तुमको समझ में ना आएं।
 तुमसे मिलकर दिल ले जाना।
 दिल का धड़कना धड़कन ने पहचाना।
 यह रीत तो जगने है बनाई ।
दिल से मिलन होकर फिर कहां  है जुदाई।
  तन से तन का मिलन हो ना पाना ये कोई गम की बात नहीं।
तुम मुझे समझ ना सका बस इस बात की है दर्द सारी।
इसका ठिकाना क्या ?
मन का मिलना कम है कोई खजाना।
 तुझ पर सब दौलत बार दूं।
तेरे लिए घर बार सब छोड़ दुं।
 तू कह कर तो देखता रे वावड़ा।
तेरे लिए सह लेती सब रुसवाई।
प्रीत की रीत सदा चली आई।
 जिसने भी इसे समझा उसकी हुई हमेशा जग हंसाई।
किसने ये प्रीत है बनाई।

कुमकुम सिंह

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