क्रूर काल के बिषम व्याधि ने, तुमको हमसे छीन लिया।
आज दिवस है भले पिता का, हर दिन हर पल शान दिया।।
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खड़े बबूरे पेड़ के नीचे,
तेरी हमको याद है आयी।
कैसी! तेरी माया प्रभु है,
चिंड़िया और चिड़ा बैठायी।
शूल सभी हैं जीवन में भारी,
बिना तुम्हारे संघर्ष किया।
सभी स्वप्न के फूल खिलाके,
मेरे हीत में आशीष दिया।
सभी दिवस पल रैन अंश्रू को, बोझिल नयन को मान दिया।
आज दिवस है भले पिता का, हर दिन हर पल शान दिया।।
स्वेद कणों से अभिसिंचित कर,
मेरे ख़ातिर महल बनाये।
मृदुल फूल से पथ सारे,
कल्पनाओं को साकार कराये।
तेरे हाथों की छाया से,
कंट सभी हैं दूर हुए।
मन मेरा जब डगमग होता,
तुंग समान सा खड़े हुए।
हमें बना हे! विश्व विधाता, भव - सागर में तान किया।
आज दिवस है भले पिता का, हर दिन हर पल शान दिया।।
सदा रही हो ठिठुरन भले रात दिन वृष्टि पड़े,
कड़ी धूप में तेरी छाया मुझको ही मिल जाती है।
अर्थ सभी हैं आज निकलते शब्दों के,
भाव पिता की आज पिता बन निकल ही जाती है।
छोड़ अकेला चिरनिंद्रा में चले गये,
पर तेरे आशीष सदा हैं मेरे लिए।
भीड़-भरी इस दुनिया में तेरी यादों से,
व्याकुल अकेला रो पड़ा हूं मैं खड़ा तेरे लिए।
निष्कलंक हो जीवन सारा, श्रम से सुरभित मान दिया।
आज दिवस है भले पिता का, हर दिन हर पल शान दिया।।
दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश ।
श़ान - ठाठ बाट
तान - विस्तार
स्वेदकण - पसीने की बूंद
तुंग - पर्वत
निष्कलंक - बेदाग
सुरभित - सुगंधित
1 टिप्पणी:
सभी जन को पिता की दिल की अनन्त गहराइयों से हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
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