"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को सादर प्रणाम, आज कबीर जी के जन्म के सुपावन अवसर पर मेरी लेखनी के कुछ उद्गारों का अवलोकन करें... चौदहीं मा दुई शेष रहाजबु जेठ कै पूनम दाखिल भा।। आतप हाल बेहाल सबै मुल शीत कै आगम जाहिर भा।। लाज कुलाज कै बाति हिया तबु जाय तडा़गु समागम भा।। भाखत चंचल काव कहीजबु दम्पति कै शुभ आगम भा।।1।। करूण पुकारु जौ कान सुनी तौ इत उत पंथु निहारबु भा।। याहि अवाजु परी जबु नीमा तौ नीरू कै आँखि विलोकबु भा।। अंकु भरैं निज बालकु वै अरू लालन पाल दुलारबु भा।। भाखत चंचल बातु लिखी घर मा किलकारी कै आउब भा।।2।। खुशियाली हिया ना समात रही नित दम्पति लाड़ दुलार मिला।। घर सून रहा वहि दम्पति कै घुटननु चलैं बाल सुचाल खिला।। निरखैं परखैं हरखैं वै जना सुकुमार गुरू फिरू नाहि मिला।। भाखत चंचल काव कही शिव धाम वहीं जबु राम मिला ।।3।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.।।मोबाइल..8853521398,9125519009।।
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