विषय- आखिरी सहारा
अंत समय अब लगता है आ रहा
दल दाल में फंसता ही जा रहा
डूब रही जीवन की नैया
पार लगा दो बन के खेवैया
अखियन में छाए अँधियारा
तू है मेरा आखिरी सहारा
जीवन भर था रिश्ते नातों में खोया
काम क्रोध लोभ अहंकार में स्वयं को डुबोया
याद किया न तुझ परमपिता को
विकारों की गठरी को जीवनभर ढोया
ऐसे ठोकर खाकर में आज गिरा हूँ
तेरी रहमत बिन उठ नहीं पाऊं
अब तो रहमत कर मेरे दाता
तू है मेरा आखिरी सहारा
आज यह बात समझ आ रही है
पुण्य में सब मांगे भागीदारी
पाप स्वयं पर पड़ते भारी
उगते हुए के होते संग सब कोई
गिरे हुए को कुचले हर कोई
सब कुछ खोकर शरण तेरी आया
रोम रोम में अब पछतावा
तू है मेरा आखिरी सहारा
नंदिनी लहेजा
रायपुर छत्तीसगढ़
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
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