निशा अतुल्य

उफ्फ ये जलन 

आदमी से आदमी क्यों दूर कर दिया
उफ्फ ये जलन तूने क्या कसूर कर दिया।

प्यार की कीमत नहीं समझे जहां में जो
जलन के खातिर खुदको,ख़ुद से दूर कर दिया ।

प्यार की नेमत न समझी,डाह सौतन संग रही 
जिंदगी बीती जब तन्हा,बात तब समझी गई।

मिट गए है तख्तों ताज उफ्फ ये जलन के वास्ते
अपनो को न समझा अपना,कैसा मन को भाव है।

माँ का किरदार सोचो और कुछ चिंतन करो
न किसी से डाह रखती,पोसती हर डाल है ।

कहाँ से बस गई दिल में जलन दुनिया के अवतार में 
कुछ तो राह ऐसी बने की उफ्फ ये जलन न हो कहीं ।

जिसने समझा त्याग को वो तिरोहित हो गया
मन में रही न कोई जलन,निर्विकार हो गया ।

बुद्ध,महावीर, राम,कृष्ण भाव कुछ बता गए
करो मनन इनके चरित्र पर,मिट जाएगी सारी जलन।

प्रेम ,त्याग,अहिंसा जीवन का बना आधार 
बढ़ चले जो जीवन पथ पर हुई उसकी तपस्या साकार।

स्वरचित 
निशा"अतुल्य"

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...