विधा-गीत
शीर्षक- "गंगा गीत"
स्वर्ग से आई है एक खबर,
पछता रहे हैं भगीरथ
गंगा को धरा पर लाकर ।
ब्रह्म लोक से आई है यह खबर,
पछता रहे हैं ब्रह्मा
अपनी कमण्डल से गंगा छोड़कर।
कैलाश पर्वत से आई है ये खबर,
पछता रहे हैं शंकर
अपनी जटा को खोलकर ।
हिमालय से आई है यह खबर,
पछता रही है गंगोत्री
गंगा को अपने घर से निकाल कर।
पर्वत मालाओं से आई है यह खबर,
पछता रहे हैं पर्वत
गंगा को आगे जाने का रास्ता देकर।
गंगासागर से आई है यह खबर,
पछता रही है स्वयं गंगा
पतित पावनी होकर ।
गंगासागर से आई है यह खबर,
पछ ता रहे हैं मुनिवर
सागर पुत्रों को श्राप देकर।
धरती पर खबर कब आएगी,
मानव को पछतायेगा
"दिनेश" अपनी गलती मान कर।
दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
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