*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
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*मोती*
◆ मोती सागर में मिले, सीपी में अनमोल।
चमक बसाए आप में, उज्ज्वल बिल्कुल गोल।
उज्ज्वल बिलकुल गोल , सदा यह मान बढ़ाती।
कभी अँगूठी बीच, कभी माला सज जाती।
कह स्वतंत्र यह बात, नार वह ही तो रोती।
रखती नहीं सम्हाल, ध्यान से लज्जा मोती।।
◆ मोती होता कीमती, जब सच्चा विश्वास।
सदा लुटाते हो खुशी , हुई प्रतिष्ठा खास।
हुई प्रतिष्ठा खास, दास को शान दिखाते।
बनते स्वयं महान, सोच वह भाव जताते ।
कह स्वतंत्र यह बात , मैल मन का सब धोती।
धरती धैर्य अपार , प्रेम सागर सम मोती।।
◆ मोती की आभा कहे, चमको यूँ दिन रात।
आलोकित कर दो धरा, दे अनुपम सौगात।
दे अनुपम सौगात , सभी को मीत बनाओ।
धारा स्रोत स्वभाव, मिलो खुद और मिलाओ।
कह स्वतंत्र यह बात, समय है नहीं बपौती।
उल्टी गंगा धार, काग खाए अब मोती।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*26.06.2021*
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