हरिहरपुरी की कुण्डलिया
त्यागो भय को हृदय से, बैठ कुंडली मार।
राम नाम के जाप से, कोरोना को जार।।
कोरोना को जार, दूर हो कर के रहना।
हो सुंदर संवाद, निडर हो कर नित चलना।।
कहें मिसिर कविराय, दूर से रक्षा माँगो।
कर काढ़ा का पान,भोग सारे अब त्यागो।।
जीवन (चौपाई)
जीवन बीत रहा है प्रति पल।
फिर भी शांत नहीं मन चंचल।।
भाग रहा मन जग के पीछे।
गिरता पड़ता ऊँचे-नीचे।।
मन संतोषी नहीं बनेगा।
सुख का अनुभव नहीं करेगा।।
सदा हाँफता भाग रहा है।
माया में ही जाग रहा है।।
पड़ा हुआ झूठे चक्कर में।
हरि वियोग भोग टक्कर में ।
क्षण भर के सुख का है चक्कर।
हतप्रभ रोगी बहुत भयंकर।।
सहज पंथ से नहिं है नाता।
ऊँचे-खाले गिरता जाता।।
मन को केवल भोग चाहिये।
कामवासना रोग चाहिये।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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