सुप्रभात
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माखन चोर कन्हैया मेरो
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विधा छन्दमुक्त गीत
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माखन चोर कन्हैया मेरों
चित्त चुराय के ले गयो मेरों
फोड़ मटुकिया माखन खायें
ग्वाल बाल संग धूम मचायें
चित्र लिखित सी रही मैं थाड़ी
अधर मौन मुख आवे न वाणी.......2
माखन चोर...............................।
वेणू मधुर बजावें मनहर
सुध बुध मेरी लीन्ही है हर
साँवली सूरत मोहनी मूरत
बलि बलि जाँऊ तुम पर गिरधर
भक्तन हित प्रभु लीला करते
प्रेम बशीभूत ओखल से बँधते.....2
माखन चोर.......................।
गेंद खेलन का करके बहाना
नागनाथ बिष मन का हरतें
लीला चीर हरण की करके
नीति ज्ञान का सन्देशा देते
प्रबलप्रेम के पाले पड़कर
छाँछ हेतु नृत्य गिरधर करते.....2
माखनचोर........................।।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
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