सुनीता असीम

जिसे अपना बनाना चाहिए था।
उसे पहले   बताना चाहिए था।
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दिवाने जो हैं डरते आशिकी में।
उन्हेंं हिम्मत बंधाना चाहिए था।
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ठिकाना जब नहीं तुमको मिला तो।
मेरा दिल ही    ठिकाना चाहिए था।
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तुम्हें मेरे ही दिल में जो था रहना।
तो पहले घर बनाना चाहिए था।
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 हसाकर क्यूं रुलाया था कन्हैया।
नहीं मथुरा को जाना चाहिए था।
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जो चाहत थी मेरी ही आपको तो।
मेरे अरमाँ जगाना     चाहिए था।
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न रहना था पड़े चुपचाप तुमको।
कभी हक भी जताना चाहिए था।
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मेरे आंसू की कीमत तुम हो मोहन।
तुम्हें  आके दिखाना चाहिए था।
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सुनीता असीम
१/६/२०२१

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