सौहार्द्र।स्नेह।प्रेम।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।अंहकार नही,सौहार्द्र, स्नेह,प्रेम,सहयोग ही जीवन*
*सफलता मन्त्र है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
अहंकार का नशा बहुत
मतवाला होता है।
मनुष्य नहीं स्वयं का ही
रखवाला होता है।।
सौहार्द, स्नेह, प्रेम,सहयोग
ही है सफल मन्त्र।
अहम क्रोध केवल बुद्धि
का दिवाला होता है।।
2
वो कहलाता सभ्य सुशील
जो सरल होता है।
वो कहलाता विनम्र शालीन
जो तरल होता है।।
इसी में है बुद्धिमानी कि
व्यक्ति प्रेम से रहे।
वही बनता सर्वप्रिय जो
नहीं गरल होता है।।
3
अहंकार जीवन के लिए एक
विषैले सर्प समान है।
कभी करे न त्रुटि स्वीकार
उस दर्प समान है।।
यह ईश्वरीय विधान है कि
घमंड सदा रहता नहीं।
वह कभी नया सीख न पाये
मादक गर्व समान है।।
4
साधन शक्ति संपत्ति सदा एक
से कभी रहते नहीं हैं।
अभिमानी को लोग सफल
कभी कहते नहीं हैं।।
वाणी का कुप्रभाव सदा ही
पड़ता है भोगना।
जान लीजिए सदैव यह जहर
लोग सहते नहीं हैं।।
___________________________
*।।मत हारो जिन्दगी से हार कर भी।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
मत हारो जिन्दगी से कि ये
प्रभु का वरदान होती है।
पूरे करने को कुछ सपने
वह अरमान होती है।।
मत छोड़ना मैदान तुम कभी
बीच मझधार में।
हार गये गर तुम मन से तो
फिर ये गुमनाम होती है।।
2
माना गम बहुत इस जमाने
में पर तुम बिखरो नहीं।
गिरो उठो संभलो चलो और
फिर भी तुम निखरों यहीं।।
पूरे करने को देखो सपने पर
जुड़े भी रहो हकीकत से।
पर भाग कर तुम इस दौड़
से मत निकलो कहीं।।
3
हर रंजोगम जिन्दगी से कभी
ऊपर नहीं है।
हार जायो तुम तो भी जिन्दगी
जीना दूभर नहीं है।।
मत रुखसत हो दुनिया से कभी
बेनाम निराश होकर।
जान लो दुनिया में कभी भी
अवसर कम नहीं है।।
4
तनाव में भी खुद जान ले लेना
कहलाती बस नादानी है।
सुख दुःख चलते साथ साथ बस
यही जीवन की रवानी है।।
यही जिंदगी की मांगऔर हमारी
है जिम्मेदारी भी।
गर सितारें हों गर्दिश में तो फिर
लिखो कोई नई कहानी है।।
5
चल कर धारा के विपरीत भी
तुम सच में ख्वाब बनो।
जिसकी रौनक खुद छा जाये
तुम वह शबाब बनो।।
असंभव शब्द में खुद ही छिपा है
सम्भव शब्द भी।
ठान लो मन में कि तुम बस
एक हीरा नायाब बनो ।।
*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।*
मोब।। 9897071046
8218685464
(अवसाद।।तनाव।।आत्महत्या जैसे
कदमों को रोकती एक रचना)
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