अरे रे सुनो चौहान रुको
इंसानियत में मत झुको
एक दो नही सत्रह बार
देश लूटने आया गद्दार
माफ ना ही गुस्ताखी हो
लुटेरो को ना माफी हो
चूक गए तो राज लेगा
देश को कंगाल करेगा
सांप को मत छोड़ो तुम
गर्दन तो मरोड़ो तुम
किसे दिखाते दया धर्म
क्यो जख्मों पर मरहम
याद रखना गद्दारो को
जन-गण के हत्यारों को
अरि को रहम दिखाना
शौर्य को वहम दिखाना
छोड़ दो हा छोड़ भी दो
वैरी से मोह छोड़ ही दो
उठा लो खड्ग तलवार
शत्रु समझ करो प्रहार
एक वार में वध ना हो
बारम्बार में शर्म ना हो
सर्प को घायल छोड़ना
शत्रु मौत से मुंह मोड़ना
उचित नही है व्यवहार
अति घातक होगा वार
हुआ वही जो होना था
वैरी कृत्य घिनौना था
करता रहा वह प्रयास
छोड़ा नही निज आस
सत्रहवीं वार,सत्ता पाया
मदमस्त शत्रु इतराया
यही हुआ है सदियों से
लहु से रंजीत नदियों से
दया धर्म महंगा पड़ा है
शत्रु सीना तान अड़ा है
भारत भूमि करे पुकार
अराति को दे ललकार
माफ ना हो गुस्ताखी
शत्रु मृत्यु का हो भागी
उठो चौहान घात करो
आसन पर आघात करो
गजनी का संहार करो
लहु से धरा श्रृंगार करो।
सोनू कुमार मिश्रा
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