सुषमा दिक्षित शुक्ला

मानव धर्म 

मानव धर्म समान जगत में ,
कोई  धर्म नहीं  है ।

मानव सेवा से बढ़कर ,
तो कोई कर्म नहीं है ।

मानवता का मर्म समझ लो ,
यही धर्म की परिभाषा ।

करो सार्थक इस जीवन को,
 यही प्रभु की अभिलाषा ।

बड़े भाग्य मनुजत्व मिला है,
 इसको व्यर्थ गंवाना ना ।

पावन कर्म करो हे! मितवा,
 जीवन को भटकाना ना ।

यही कर्म है यही धर्म  है ,
यह ही कर्तव्य तुम्हारा है ।

मानवता के पावन पथ पर ,
ही  गंतव्य  तुम्हारा  है  ।

मानवता का सेवक ही तो,
 प्रभु सेवा का भागी है ।

यही मर्म जो समझ सका है ,
वह प्रभु का अनुरागी है ।

सुषमा दिक्षित शुक्ला

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