निशा अतुल्य

संत कबीर जयंती पर अर्पित भाव
दोहा 


रामानुज के शिष्य थे, मंत्र मिला शुभ 'राम'।
राम नाम सुमिरन किया,भज निर्गुण अविराम।

अनपढ़ हुए कबीर पर, बाँटे अद्भुत ज्ञान।
साखी ज्ञानामृत पिला, जग को दी पहचान।।

आडंबर पर था किया, कवि ने खूब प्रहार।
निर्मल जीवन से सदा, बनें सरल व्यवहार।

श्रुतियाँ लिखते शिष्य थे, गाते रहे कबीर।
रमें जुलाहा कर्म में, मन से हुए अमीर।।

ताना बाना बुन दिया,मनुज न धरता ध्यान।
जात-पाँत में बट गया,निज हित रखता ज्ञान ।

स्वरचित 
निशा"अतुल्य"

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