जीवन एक संघर्ष है।
जो हारेगा नही कठिन पल में
उसी का एक दिन उत्कर्ष है।
पग पग पर है काँटे बिछाए।
किसके द्वारा कौन समझाए।
सब चाहे केवल केवल गिराना।
यही तो वास्तविक उत्कर्ष है।
मौत से खेलने से लेकर।
अपनी इच्छा का आहुति देकर।
जो चढ़ता फर्स से अर्स है।
जीवन एक संघर्ष है।
कठिनाइयों से गुजरता है जो।
फूल सा ही प्रेम काँटों से करता है जो।
जो डरता नही भय कभी खाता नही
उसके ही भाग्य में अंतिम हर्ष है।
आसान नही जहाँ दो गज जमीन पाना।
होता है क्या आसान आशियाना बनाना।
घबराना नहीं क्योकि यह उपाय ही नही।
अरे यही कर्म और भाग्य के बीच का तर्ज है।
एक ही सत्य है एक दिन अंत होने का।
फिरभी अर्थ अलग है कंजूस व संत होने का।
लगे रहना भी जीत है आँखरी वक्त तक।
किसी और से नही अपितु स्वयं से संघर्ष है।
प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'
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