*गीत*
*उर्मिला की व्यथा*
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मौसम देख बहुत अकुलाई , आज उर्मिला रानी।
कैसे बीते पिय बिन रैना , खुशियाँ आनी जानी।
मौसम बदला बरखा आई , झूमे तरुवर डाली।
पुष्प खिले बागों में देखे , खुश होता है माली।
भँवरे चूमें अधर पुष्प के, करें सदा मनमानी।
मौसम देख बहुत अकुलाई....।।
भाई का यह प्रेम तुम्हारा, मुझ पर पड़ता भारी।
सब बंधन तुम छोड़ गए हो , मैं हूँ अति लाचारी।
नैना तुम बिन भीग रहे हैं, नीरस बरखा पानी।
मौसम देख बहुत अकुलाई.....।।
मुझे ब्याह कर गठबंधन कर, जनकपुरी से लाए।
राम गए तो सीता भी संग, तुम क्यों हो बिसराए।
भौतिक सुख ही खुशी नहीं है, यह कहते हैं ज्ञानी।
मौसम देख बहुत अकुलाई.....।।
चौदह वर्ष बितायूँ कैसे, कैसे रहूँ अकेली।
तुम बिन सूना- सूना आँगन, सूनी सकल हवेली।
चार बार यह मौसम बदले, स्थिर मेरी कहानी।
मौसम देख बहुत अकुलाई.....।।
जनकपुरी से अवध ले आए, उर में मुझे बसाए।
तुम कर्तव्य भ्रात का अपने, हिय से सदा निभाए।
पति रूपी दायित्व भूलकर, हमें करे बेगानी।
मौसम देख बहुत अकुलाई.....।।
राम सिया तो साथ चले थे, भरत मांडवी साया।
शत्रुघ्न श्रुतकीर्ति सतत ही, सुंदर साथ निभाया।
मैं उर्मिला वियोग बसाए, बीती सकल जवानी।
मौसम देख बहुत अकुलाई.....।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रतागराज*✒️
*22.06.2021*
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