डॉ० रामबली मिश्र

मिसिर की कुण्डलिया

मानव बन अतिशय सहज, भावुक सरल सुजान।
बैठाओ उर में सदा, रामेश्वर श्रीमान।।
रामेश्वर श्रीमान, बनें सबका उद्धारक।
पापी को भी मोक्ष, दिलाकर हों नित तारक।।
कहें मिसिर कविराय, नहीं बनना तुम दानव।
पढ़ मानव का पाठ,बनो मनमोहक मानव।।

       हरिहरपुरी की कुण्डलिया

अतुलित बनने की करो, इच्छा मन में यार।
स्वाभिमान के मंत्र से,करना जीर्णोद्धार।।
करना जीर्णोद्धार, स्वयं को सुंदर रचना।
कर खुद का उद्धार, बनो उत्तम संरचना।।
कहें मिसिर कविराय, साधना करना परहित।
लगे जगत से नेह, धरा पर दिखना अतुलित।।

      मिसिर हरिहरपुरी की 
            कुण्डलिया

गौतम बुद्ध महान में,लोग खोजते दोष।
अच्छाई दिखती नहीं, सिर्फ दोष-संतोष।।
सिर्फ दोष-संतोष, मनुज है कायर माया।
सुंदरता का अर्थ, नहीं जानत मन-काया।।
कहें मिसिर कविराय,गढ़त जो पथ सर्वोत्तम।
सकल राज सुत नारि,  त्याग बनता वह गौतम।।

      मिसिर की कुण्डलिया

मस्तक का श्रृंगार है, निर्मल मन का भाव।
पावन उज्ज्वल मन कमल, में औषधि की छाँव।।
में औषधि की छाँव, करत है कंचन काया।
हरती मन-उर रोग, बहाती सब पर दाया।।
कहें मिसिर कविराय, रखो मन में शिव पुस्तक।
चमके सदा ललाट, खिले चंदन से मस्तक।।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...