रामबाबू शर्मा राजस्थानी

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                    अराधना
                🙏 पिता 🙏
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घर परिवार अपनत्व की,आन-बान-शान है पिता।
हिम से ऊंचा,जीवनरूपी रथ का पहिया,है पिता।।
क्षमा करआगे बढ़ने का हर अवसर देता है पिता।
इच्छा रूपी स्वाद को,चखने का जरिया है पिता।।

भाईचारा,प्यार की एक सच्चीपाठशाला है पिता।
बचपन रुपी खेलों की सुगम कार्यशाला है पिता।।
कितना भी हो,घोर अंधेरा दीपक सी लो है पिता।
नजर-टोटकों-करतूतों, की औषध डोरी है पिता।।

थका- हारा भी, कमजोरी नहीं दिखाता है पिता।
धन्य हो जाते है हम ,जब खुशी लुटाता है पिता।।
कुछ नहीं खाया, कहकर खुद खिलाता है पिता।
सचमानें तो ईश्वर का दूसरा ही अवतार है पिता।।

कितनीही डगर कठिन हो,सुलभ रास्ता है पिता।
जीवनकी नैया मेंअसली तश्वीर सजाता है पिता।।
कितनी भी हो सर्दी,गर्मी,रक्षाका कवच है पिता।
कर्मपथ के भूमण्डल में कुदरत का रुप है पिता।।

भला कर भला होगा, संस्कार सिखाता है पिता।
हो कितनी भी मजबूरी,मान की चौखट है पिता।।
मुसीबत से छुटकारा, खुशी की सौगात है पिता।
इस तपस्या का सही में, सच्चा हकदार हैं पिता।।

   ©®
      रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

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