*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलियां*
*वीणापाणी*
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◆ वीणापाणी हंस पर, आती जीवन द्वार।
भक्ति निहित मन साधना, करती जन उद्धार।
करती जन उद्धार, ह्रदय में वास मनोहर।
सतत् साधना मूल, ज्ञान हिय श्रेष्ठ धरोहर।
कह स्वतंत्र यह बात, पूजनीय हैं ब्रह्माणी।
ह्रदय नमन शत बार, ज्ञान दो वीणापाणी।।
◆ मातु शारदा कर कृपा, बुद्धि करो विस्तार।
ज्ञान चक्षु शोभा सहित, प्राप्ति सुखद आधार।
प्राप्ति सुखद आधार, नहीं भव बंधन अपना।
झंकृत वीणा तार, मंत्र शुभ वाणी जपना।
कह स्वतंत्र यह बात, ज्ञान रूपी कल्याणी।
अक्षर बसती मूल, जहाँ बस वीणापाणी।
◆ मातु शारदा ज्ञान से, आम व्यक्ति हो खास।
मूर्ख ज्ञान की प्राप्ति से, बनता कालीदास।
बनता कालीदास , अलख नव ज्योति जलाता।
जागृत सुप्त सुजान, गंग नद धार बहाता।
कह स्वतंत्र यह बात, धैर्य संयम निर्वाणी।
शोभा सुखद विचार, मूल हिय वीणापाणी।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
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