स्नेहलता नीर

गीत
***
16/16

नमामि गंगे! नमामि गंगे,
मोक्षदायिनी तुम शुभकारी
पावन कर दो तन- मन मैया,
करें रात -दिन विनय तुम्हारी।।
1
पावन  स्थल  गोमुख उद्गम।
पावन है प्रयाग का संगम।
लगते  कुंभ   तुम्हारे  तट पर।
मिले  बंग में  तुमसे   सागर।।

सभी जलों की तुम हो जननी,
हम सबकी तुम हो महतारी।।
2
पावन निर्मल तव जल  धारा।
कल -कल का स्वर लगता प्यारा।
नीर -पान कर सब सुख पाते।
सकल पाप जल से धुल जाते।।

प्रतिपल रहना साथ हमारे,
तुम दुखहारी, तुम गुणकारी।।
3
तुम हो गहन तपस्या का फल ।
तुमसे भाग्य हिंद का उज्ज्वल।
पावन सुफल तुम्हारी गाथा।
तुम्हें  नवाते  हैं  सब   माथा।।

स्वर्ग  लोक  से तुम आई हो,
कोटि नमन हे !माँ  अवतारी।।
4
वेद -पुराण नित्य गुण गाएँ।
 सुर -नर- मुनि सब तुमको ध्याएँ।
सदियों से तुम बहती आईं।
जन- जन के मन को अति भाईं।।

विष्णुपदी  सुरसरिता तुम हो,
तुमको शीश स्वयं शिव -धारी।।
5
हिंद भूमि तुम करतीं सिंचित।
हरियाली से  धरा सुसज्जित।
सुख -समृद्धि  तुम्हीं  से माता।
 जनम -जनम का  तुमसे नाता।।

 कृपादृष्टि समदृष्टि जननी तव!
झोली  भरते रहें  हमारी।।

-स्नेहलता 'नीर'
रुड़की,उत्तराखण्ड
मौलिक,स्वरचित रचना

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...