गीत
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नमामि गंगे! नमामि गंगे,
मोक्षदायिनी तुम शुभकारी
पावन कर दो तन- मन मैया,
करें रात -दिन विनय तुम्हारी।।
1
पावन स्थल गोमुख उद्गम।
पावन है प्रयाग का संगम।
लगते कुंभ तुम्हारे तट पर।
मिले बंग में तुमसे सागर।।
सभी जलों की तुम हो जननी,
हम सबकी तुम हो महतारी।।
2
पावन निर्मल तव जल धारा।
कल -कल का स्वर लगता प्यारा।
नीर -पान कर सब सुख पाते।
सकल पाप जल से धुल जाते।।
प्रतिपल रहना साथ हमारे,
तुम दुखहारी, तुम गुणकारी।।
3
तुम हो गहन तपस्या का फल ।
तुमसे भाग्य हिंद का उज्ज्वल।
पावन सुफल तुम्हारी गाथा।
तुम्हें नवाते हैं सब माथा।।
स्वर्ग लोक से तुम आई हो,
कोटि नमन हे !माँ अवतारी।।
4
वेद -पुराण नित्य गुण गाएँ।
सुर -नर- मुनि सब तुमको ध्याएँ।
सदियों से तुम बहती आईं।
जन- जन के मन को अति भाईं।।
विष्णुपदी सुरसरिता तुम हो,
तुमको शीश स्वयं शिव -धारी।।
5
हिंद भूमि तुम करतीं सिंचित।
हरियाली से धरा सुसज्जित।
सुख -समृद्धि तुम्हीं से माता।
जनम -जनम का तुमसे नाता।।
कृपादृष्टि समदृष्टि जननी तव!
झोली भरते रहें हमारी।।
-स्नेहलता 'नीर'
रुड़की,उत्तराखण्ड
मौलिक,स्वरचित रचना
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